कश्मीरी हिंदुओं का दर्द !
कश्मीर में 1990 में क्या हुआ कश्मीरी पंडितों के साथ ये बात किसी से छुपी नहीं है !
कश्मीर देखने में बिलकुल जन्नत जैसा. जिसे धरती का स्वर्ग कहा जाता है. कश्मीर को सनातन धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है.
कश्यप ऋषि के नाम पर परा जो स्थान है वह कश्मीर है. जिसकी हसीं वादियां दिल को खुश कर देती है
यह कहानी 1990 के उस दौर की है जब कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के साथ बहुत ही गलत व्यवहार हुआ।
जब लाखों की संख्या में कश्मीरी पंडितों को आतंकियों की धमकी के चलते अपने घर छोड़कर भागना पड़ा था। हालांकि, यह किन हालात में हुआ और वे कौन से प्रमुख चेहरे थे, जो इस पूरे घटनाक्रम में लगातार सामने आते रहे, इस पर देश में ज्यादा चर्चा नहीं हुई।
कश्मीरी पंडित यानी कश्मीर में रहने वाला ब्राह्मण समुदाय। यह समुदाय शुरुआत से ही घाटी में अल्पसंख्यक था।जम्मू कश्मीर में इस्लामी कैसे कटरटा भड़क गया, इसको जानने के लिए हमें साल 1975 में जाना होगा।
यह वह समय था जब भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने शेख अब्दुल्ला के साथ समझौता किया था ताकि कश्मीरी घाटी के हालात सुधर सके।इस समझौते के बाद ही शेख अब्दुल्ला को कश्मीर की सत्ता मिली ,कहा जाता है कि इस समझौते का कश्मीर के अधिकतर मुस्लिम लोगों ने इसका विरोध किया था।
कश्मीर का एक तबका हमेशा से अलगाव वादों का समर्थक रहा है। हालांकि इस पार्टी को कभी भी कश्मीर में अपना एजेंडा फैलाने का मौका नहीं मिला था।तब साल 1977 में इस संगठन को जेकेएलएफ के नाम से लाया गया। कश्मीर के नरसंहार में इस संगठन की बहुत बड़ी भूमिका रही थी। इस संगठन के नेता बिट्टा कराटे ने 1991 में न्यूज़ चैनल को दिए इंटरव्यू में 30 से 40 कश्मीरी पंडितों को मारने का दावा किया था।
2 जुलाई 1984 को केंद्र की इंदिरा गांधी सरकार ने ही शेख अब्दुल्ला के बेटे और तत्कालीन सीएम फारूक अब्दुल्ला की सरकार को भंग कर दिया था। आरोप था कि अब्दुल्ला सरकार ने कांग्रेस के लोगों और कश्मीरी पंडित के खिलाफ बर्बर हमले करवाए। कांग्रेस ने कुछ समय बाद ही फारूक अब्दुल्ला के बहनोई गुलाम मोहम्मद शाह को मुख्यमंत्री बना दिया।
फरवरी 1986 में गुलाम मोहम्मद शाह के सीएम रहते हुए ही जम्मू-कश्मीर में पहली बार हिंदू-मुस्लिम दंगे हुए थे। तब शाह ने सचिवालय में एक मस्जिद स्थापित करवाई थी। इसे लेकर हिंदुओं ने प्रदर्शन किए और जम्मू से लेकर कश्मीर तक जबरदस्त दंगे हुए।
बताया जाता है कि दंगों में 10 से ज्यादा कश्मीरी पंडितों की मौत हुई थी।
राज्य के तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन ने जम्मू-कश्मीर में पहली बार भड़के दंगों को लेकर गुलाम मोहम्मद शाह की सरकार को भंग कर दिया था। इस बात को लेकर देश भर में काफी बहस चल रही है कि जब जम्मू-कश्मीर में संकट की स्थिति पैदा हुई तो जगमोहन भाजपा समर्थित राज्यपाल थे। हालांकि, सच्चाई यह थी कि अपने पहले कार्यकाल में ही उन्हें कांग्रेस सरकार ने राज्यपाल बनाया था। वह पूरे पांच साल तक राज्यपाल रहे और यही वह समय था जब कश्मीर के हालात बिगड़ने लगे।
कश्मीर में हिंसा फैलाने के बाद जेकेएलएफ ने पहली बार 14 सितंबर 1989 को किसी कश्मीरी पंडित की निशाना बनाकर हत्या की। यह नाम था घाटी के भाजपा नेता टीका लाल टपलू का। इसके बाद जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज नीलकंठ गंजू को श्रीनगर में हाईकोर्ट के ही बाहर मौत के घाट उतार दिया गया था।
फारूक अब्दुल्ला ने 20 जनवरी 1990 को सीएम पद से इस्तीफा दे दिया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया।फारूक अब्दुल्ला के इस्तीफा देने के साथ ही कश्मीर से कश्मीरी पंडितों का पलायन शुरू हो गया।यह सब फारूक अब्दुल्ला की सोची समझी साजिश थी।जिसका ना जाने कितने लाखों कश्मीरी पंडितों को इसका अंजाम भुगतना पड़ा।
1990 से पहले कश्मीर में 900000 हिंदू थे जो कि 1990 के बाद अब सिर्फ 800 ही रह गए हैं।
आपको यह जानकारी कैसी लगी। हमें कमेंट करके जरूर बताएं। धन्यवाद!
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